रविवार, 2 अगस्त 2009

विदेशी विज्ञापनों का बाल मन पर प्रभाव। भाग:1 और 2 ।

प्रस्तुत है श्री राजीव दीक्षित का विदेशी विज्ञापनों का बाल मन पर प्रभाव विषय पर व्याख्यान । भाग:1 और 2 ।


भाग:1 ->



भाग:2 ->

विदेशी विज्ञापनों का झूठ । भाग: 1

प्रस्तुत है श्री राजीव दीक्षित का "विदेशी विज्ञापनों का झूठ" विषय पर व्याख्यान । भाग: 1

विदेशी विज्ञापनों का झूठ । भाग: 2

प्रस्तुत है श्री राजीव दीक्षित का विदेशी विज्ञापनों का झूठ विषय पर व्याख्यान । भाग: 2

रविवार, 28 जून 2009

भारत की आज़ादी का इतिहास: भाग-5 /भाग-6

श्री राजीव दीक्षित जी की व्याख्यानमाला से ।

मित्रों, करीब सौ कड़ियों की इस व्याख्यानमाला की शुरूआत हम श्री राजीव दीक्षित जी द्वारा सन 1997 में महाराष्ट्र के एक मंदिर में दिये गये ”भारत की आज़ादी का इतिहास“ नामक व्याख्यान से कर रहे हैं । हालांकि ये व्याख्यान 12 वर्ष पुराना है लेकिन तब से भारत देश की परिस्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है बल्कि बहुत से मामलों में स्थिति खराब ही हुई है । उम्मीद है कि ये व्याख्यानमाला आपको पसंद आयेगी ।


भारत की आज़ादी का इतिहास: भाग-6



भारत की आज़ादी का इतिहास: भाग-5

शनिवार, 20 जून 2009

भारत की आज़ादी का इतिहास: भाग-4

भारत की आज़ादी का इतिहास: भाग-4
श्री राजीव दीक्षित जी की व्याख्यानमाला से ।

मित्रों, करीब सौ कड़ियों की इस व्याख्यानमाला की शुरूआत हम श्री राजीव दीक्षित जी द्वारा सन 1997 में महाराष्ट्र के एक मंदिर में दिये गये ”भारत की आज़ादी का इतिहास“ नामक व्याख्यान से कर रहे हैं । हालांकि ये व्याख्यान 12 वर्ष पुराना है लेकिन तब से भारत देश की परिस्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है बल्कि बहुत से मामलों में स्थिति खराब ही हुई है । उम्मीद है कि ये व्याख्यानमाला आपको पसंद आयेगी ।

भारत की आज़ादी का इतिहास:भाग - 5 जल्दी ही आपको सुनने को मिलेगा । जय हिंद ।


गुरुवार, 11 जून 2009

भारत की आज़ादी का इतिहास: भाग-3

श्री राजीव दीक्षित जी की व्याख्यानमाला से ।

मित्रों, करीब सौ कड़ियों की इस व्याख्यानमाला की शुरूआत हम श्री राजीव दीक्षित जी द्वारा सन 1997 में महाराष्ट्र के एक मंदिर में दिये गये ”भारत की आज़ादी का इतिहास“ नामक व्याख्यान से कर रहे हैं । हालांकि ये व्याख्यान 12 वर्ष पुराना है लेकिन तब से भारत देश की परिस्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है बल्कि बहुत से मामलों में स्थिति खराब ही हुई है । उम्मीद है कि ये व्याख्यानमाला आपको पसंद आयेगी ।

भारत की आज़ादी का इतिहास:भाग - 4 जल्दी ही आपको सुनने को मिलेगा । जय हिंद ।


सोमवार, 8 जून 2009

भारत की आज़ादी का इतिहास: भाग-2

श्री राजीव दीक्षित जी की व्याख्यानमाला से ।
भारत की आज़ादी का इतिहास: भाग-2 ।

मित्रों, करीब सौ कड़ियों की इस व्याख्यानमाला की शुरूआत हम श्री राजीव दीक्षित जी द्वारा सन 1997 में महाराष्ट्र के एक मंदिर में दिये गये ”भारत की आज़ादी का इतिहास“ नामक व्याख्यान से कर रहे हैं । हालांकि ये व्याख्यान 12 वर्ष पुराना है लेकिन तब से भारत देश की परिस्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है बल्कि बहुत से मामलों में स्थिति खराब ही हुई है । उम्मीद है कि ये व्याख्यानमाला आपको पसंद आयेगी ।

भारत की आज़ादी का इतिहास:भाग - 3 जल्दी ही आपको सुनने को मिलेगा । जय हिंद ।


गुरुवार, 4 जून 2009

भारतीय आज़ादी का इतिहास: भाग-1

श्री राजीव दीक्षित जी की व्याख्यानमाला । : भाग-1 .
विषयः भारतीय आज़ादी का इतिहास: भाग-1


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भारतीय आज़ादी का इतिहास: भाग-2 जल्दी ही आपको सुनने को मिलेगा ।
आपको ये व्याख्यान कैसा लगा? आपके विचार आमंत्रित हैं ।

शुक्रवार, 22 मई 2009

भारत स्वाभिमान के उद्देश्य एवं नीतियां

1. योग, प्राणायाम एवं आयुर्वेद की मदद से सभी नागरिकों को निरोगी बनाना । भारत देश की जनसंख्या इस समय 115 करोड़ है । भारत देश में गरीबी के कारण मात्र 35 प्रतिशत नागरिक ही अपना इलाज करा सकते हैं । बचे हुए 65 प्रतिशत नागरिकों के इलाज के लिए तो प्राणायाम और योग ही एक मात्र उपाय है । नागरिकों की जीवनशैली एवं खान-पान को आयुर्वेद के अनुसार ढालने पर ही एक स्वस्थ्य समाज की रचना हो सकती है ।

2. भारत देश की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था को बदलना । नई शिक्षा व्यवस्था में भारतीयता और संस्कार को आधार बनाना । हम सभी जानते हैं कि आज की भारतीय शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों की बनाई हुई है और अंग्रेजों की चलाई हुई है । सन 1840 में एक अंगे्रज अधिकारी टी. बी. मैकाले द्वारा तैयार किये गये प्रारूप के आधार पर भारत की आज की शिक्षा व्यवस्था का ढांचा खड़ा हुआ है । मैकाले ने भारत के नागरिकों को आत्मा से अंग्रेज और दिमाग से बाबू (क्लर्क) बनाने के लिए ये सारा ढांचा खड़ा किया था ।)

३- स्वदेशी से स्वावलंबी भारत का निर्माण । आज़ादी के 62 वर्षों के बाद भी हम भारतवासी विदेशी भाषा, विदेशी भूषा, विदेशी भोजन, विदेशी भाव, विदेशी भेषज (दवाएं) और विदेशी वस्तुओं का भरपूर उपयोग कर रहे हैं । इसके कारण देश का लाखों करोड़ों रूपया भारत से बाहर जा रहा है । पूरे देश में स्वदेशी का आग्रह भारतीय नागरिकों में पैदा हो इसके लिए आंदोलन करने की जरूरत है । अपने आत्म सम्मान को स्वदेशी के द्वारा ही पुनःजीवित किया जा सकता है ।


4- भारत की ग्रामीण व्यवस्थाओं का सम्पूर्ण स्वावलम्बन । अंग्रेजों के आने के पहले भारत के सभी गांव पूर्णरूप से स्वावलम्बी थे । अंग्रेजों ने कई कानून बना कर भारत की ग्रामीण कृषी व्यवस्था, ग्रामीण अर्थव्यवस्था, ग्रामीण कारीगरी आदि को खत्म कर दिया । भारत की खेती अब विदेशी ज्ञान और तकनीकी पर आधारित हो गई है । जिसके चलते खेतों में यूरिया, डीएपी, सुपर फास्फेट और रासायनिक कीटनाशकों का ज़हर भर गया है । धरती की धमनियों में रासायनिक खाद और कीटनाशकों के ज़हर का इतना असर हुआ है कि हमारे भोजन में भी यह ज़हर पहुंच चुका है । हमारा खून तक ज़हरीला हो गया है । भारतीय माताओं का दूध भी ज़हरीला हो गया है । गांव में अर्थव्यवस्था के पूरी तरह से टूट जाने का दुष्परिणाम यह है कि रोज़गार के सभी अवसर गांवों में समाप्त हो रहे हैं । भारतीय नागरिक गांव से पलायन कर के शहरों की तरफ दौड़ रहे हैं । गांव खाली हो रहे हैं । शहरों में भीड़ बढ रही है, जो झुग्गी-झोपड़ियों और मलिन बस्तियों में रहने को मजबूर हैं । अतः भारत के गांवों में ऐसी व्यवस्थाएं खड़ी करनी होंगी जो हमारी धरती को रासायनिक खाद और कीटनाशकों के ज़हर से बचा सके और किसान की खेती को स्वावलम्बी बना सकें । गांवों की अर्थव्यवस्था का भी पुनःनिर्माण इस तरह से करना होगा कि रोज़गार के अवसर गांवों में ही विकसित हो सकें और धन का प्रवाह गांवों की ओर हो सके ।

5- भारत में जल प्रबंधन को बेहतर और विकसित करना । भारत दुनिया का एक ऐसा देश है जिसकी जलवायु एवं मौसम सबसे अच्छा है । भारत में समय से मौसम आते हैं, समय से बारिश होती है और हमारे देश की जरूरत से ज्यादा होती है । फिर भी हमारे खेत, हमारे उद्योग और हम पानी से प्यासे हैं । बारिश का भरपूर पानी है जो बूंद-बूंद एकत्रित किया जा सकता है । हमें राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी तकनीकी का उपयोग करना है जो यह कर सके ।

6- हमारे जीवन में और पर्यावरण में स्वच्छता एवं शुद्धता को बढाना । (भारत के सभी शहर गंदगी के ढेर पर बैठ हुए हैं । उद्योगों से निकला हुआ कचरा और हमारी पश्चिमी जीवन शैली से निकला हुआ मलबा दोनों ने ही हमारे जीवन को नरक बना रखा है । इस कचरे और मलबे को ठिकाने लगाना ही पड़ेगा । इसके लिए कुछ तकनीक का उपयोग करके और लोगों की चेतना को बढा कर उनकी जीवन शैली का भारतीयकरण करना होगा । पिछले कुछ वर्षों में हमारे पेड़ और जंगल काफी खत्म हुए हैं । बिना पेड़ और जंगलों के जीवन दुष्कर है । इसलिए पेड़ों की संख्या बढा कर जंगलों को और अधिक विकसित करना बहुत जरूरी है । तभी पर्यावरण की शुद्धता बढेगी ।

7 . भारत में राजनैतिक और आर्थिक भ्रष्टाचार को समाप्त करना और विदेशी बैंकों में जमा भारत के काले धन को वापस लाना । भारत दुनिया के भ्रष्टतम देशों में गिना जाता है । महान लोगों की धरती भारत के लिए यह शर्म की बात है । 1984 में किये गये एक अध्ययन के अनुसार भारत देश में विकास के ऊपर होने वाले खर्च का मात्र 15 प्रतिशत ही किसी गरीब तक पहुंचता है । इसका अर्थ है कि भारत में 85 प्रतिशत धन भ्रष्टाचार में समाप्त हो जाता है । इसके कारण ही भारत में गरीबी और बेरोज़गारी अपने चरम पर है । भारत के 84 करोड़ लोग प्रतिदिन 20 रूपये से कम पर अपना जीवन घसीट रहे हैं । इस भ्रष्टाचार के भस्मासुर को आज नहीं तो कल खत्म करना ही होगा । भारत में भ्रष्टाचार करके लूटा हुआ धन विदेशी बैंकों में जमा किया जा रहा है । स्विस बैंकों के एसोसिएशन के अनुसार भारत का लगभग 72 लाख 80 हजार करोड़ रूपया (72,80,000,000,००००) स्विस बैंकों में जमा है । इसके अतिरिक्त दुनिया के अन्य कई देशों में भी भारत का काला धन बिना किसी उपयोग के पड़ा हुआ है । इस धन को भारत में ला कर विकास कार्य तेजी से किया जा सकता है ।

8. भारत की कर व्यवस्था में सुधार करना । भारत देश में अंग्रेजों के खिलाफ 1857 में पहली क्रांति हुई थी । इसके के बाद दूसरी कोई क्रांति अंग्रेजों के खिलाफ भारत में न हो इसके लिए अंग्रेजों ने कानून व्यवस्था बनाई । इस कानून व्यवस्था की मदद से और अधिक अत्याचार भारतवासियों पर किये गये । सन 1860 में भारतवासियों की आमदनी पर आयकर लगाया गया ताकि भारतवासी अपना अतिरिक्त धन क्रांतिकारियों को दान न दे सकें । भारतीय नागरिकों के उद्योगों पर उत्पाद कर इतना अधिक लगाया गया कि भारत के सामान अंग्रेजी सामान से अधिक मंहगे हों और बाज़ार में ना बिक सकें । इसी तरह के कई अन्य कर और लगाये गये । 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों के जाने के बाद इन कानूनों और करों की व्यवस्था वैसी की वैसी ही चल रही है तथा नये टैक्स कानूनों के कारण भारतवासियों की स्थिति बद से बदतर हुई है । भारत के नागरिकों पर कमरतोड़ मंहगाई का बोझ इसी टैक्स व्यवस्था के कारण है ।

9. भारत की कानून व्यवस्था में सुधार करना । (अंग्रेजों ने भारत की गुलामी को स्थायी बनाने के लिए लगभग 34735 कानून बनाये थे । आजादी 62 सालों के बाद भी ये सभी कानून भारत में चल रहे हैं, इससे बड़ा दुर्भाग्य देश का और क्या होगा ? हमारे सभी क्रांतिकारी और शहीदों की शहादत इन्हीं अंग्रेजी काले कानूनों के कारण ही हुई थी । आजादी के बाद तो जल्दी से जल्दी इन कानूनों को समाप्त करने या बदलने का कार्य होना चाहिए । इन्हीं अंग्रेजी काले कानूनों के कारण भारतीय नागरिकों को न्याय नहीं मिलता । भारत की तमाम अदालतों में 3.5 करोड़ से ज्यादा मुकद्दमे चल रहे हैं । जिनमें 10 करोड़ से अधिक लोग अदालतों के चक्कर काट रहे हैं । न्याय का नहीं मिलना ही सबसे बड़ा अन्याय होता है ।

10. प्रशासन और पुलिस व्यवस्था में सुधार । भारत की पूरी प्रशासनिक व्यवस्था (कार्यपालिका) अंग्रेजी कानून और पद्धति पर ही संचालित है । अंग्रेजों का प्रशासन भारतवासियों पर गुलामी के अत्याचार करने के लिए ही बना था । आज भी भारतवासी इसी प्रशासन के बोझ तले दबे हुए हैं । सन 1860 में अंग्रेजों ने इण्डियन पुलिस एक्ट और इण्डियन सिविल सर्विसेज़ एक्ट जैसे कई कानून बना कर पुलिस और प्रशासन को स्थापित किया । दुर्भाग्य से वही पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्था भारत में आज भी चल रही है ।

11। शतप्रतिशत मतदान । भारत में लोकतंत्र राजनीति का आधार है । मतदान इस लोकतंत्र की बुनियाद है । दुर्भाग्य से भारत में औसतन 50 प्रतिशत ही मतदान होता है । आधे से अधिक भारतवासी तो वोट ही नहीं डालते हैं । भारत में मान्यता प्राप्त एवं पंजीकृत राजनैतिक दलों की संख्या 48 से अधिक है । अतः भारत में बहुत कम वोट अंतर पर ही लोकसभा एवं विधानसभा के सदस्य चुन लिए जाते हैं । हमारे लोकतंत्र में अभी धन एवं गुण्डा शक्ति का बोलबाला है । चरित्रहीन, भ्रष्टाचारी एवं अपराधी किस्म के लोग चुन कर लोकसभा, विधानसभाओं एवं स्थानीय निकायों में पहुंच रहे हैं । शतप्रतिशत मतदान के द्वारा ही हमारा लोकतंत्र सफल हो सकता है .